मेरा 'मत' दान के लिए देश और समाज के लिए
*मेरे पास 'मत' है और देश व समाज के लिए मेने उसका दान किया है*
ब्रजद्वार (हाथरस)। गणतंत्र से मिली ताकत का नाम है 'मत'। 'मत' का सदैव दान ही किया जाता है। आप चाह करके भी 'मत' को उधार नहीं दे सकते। 'मत' मजबुरी नहीं अपितु स्वैच्छिक रूप से किसी ऐसे व्यक्ति, संघ या संगठन को दान किया जा सकता है जिस से शांति, सौहार्द और सद्भावना की आपको उम्मीद हो। भारतीय गणतंत्र में तो 'मत' की और अधिक जिम्मेदारी बढ़ जाति है क्योंकि भारतीय गणतंत्र ही वह सर्व कल्याणी व्यवस्था है जिसके माध्यम से पूरे विश्व में बहुसंख्यक समाजों को सुरक्षा और संरक्षा मिल सकती है, बसरते कि इसकी बागडोर सच्चे, नि:स्वर्थ और सनातनी संकल्प की सोच वाले व्यक्तित्व के हाथों में होनी चाहिए। जिसके अंदर न परिवार बाद की पकौड़ी सिकती हो और ना हीं भ्रष्टता की मलाई जमती हो। मेने भी एक ऐसे ही व्यक्तित्व को आज पुन: एक बार फिर से अपने मत का दान कर दिया है। हालांकि मेरा परिवार भी देश में एक विदेशी भाषा में उच्चरित नाम वाली पार्टी का दिवाना हुआ करता था। यह ही नहीं देश के लिए अपना लहू भी बहाने वाले मेरे पूर्वजों ने जिन संकल्प के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी थी। वह संकल्प बीते वर्ष 2014 से पूरा होने लगा है। उससे पूर्व तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय
संस्कृति, समाज और निवासियों के साथ धोखा ही हुआ। खैर चर्चा देश, समाज और सुरक्षा को लेकर है और वह पूरी होती है गारंटी से, लेकिन गारंटी देगा कौन ? गारंटी मुहं से नहीं करके दिखाई जाती है। जबकि गारंटी देने वाली उस सख्शियत ने गारंटी दी और फिर उसको पूरा किया। यह मेने ही मेने ही नहीं माना पूरे देश, समाज और विश्व ने माना। मैं गलता हो सकता हूँ, कुछ और लोग गलत हो सकते हैं, कुछ समूह भी गलत हो सकते हैं, लेकिन पूरा का पूरा विश्व गलत नहीं हो सकता है। आज पूरा विश्व भारतीय निर्देशन में चलने को तैयार है, लेकिन जो लोग 'मत' का अर्थ ही नहीं समझते और निहित स्वार्थों में डूबे हैं या फिर कुछ शैतानी ताकतों के कठपुतली बने हैं, वह उस महान मानव की गारंटी को स्वीकार नहीं कर रहे, लेकिन जिस एक मात्र धर्म में यह नारा लगता है, "लोगों में सद्भावना हों और विश्व का कल्याण हो" की पुरातात्विक गाथा को सिद्ध करते हुए नरेंद्र (नर+इंद्र) ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि वह ही वास्तव में 'मत' का
अधिकारी है और मेरा उत्तरदायित्व है कि मैं यानी आम 'नर' उसको अपने मत का दान करे। दान वह ही कर सकता है जिस के पास हो क्या हो यानी विवेक (मत)। जिसके पास नहीं है वह तो दान कर ही नहीं सकता क्योंकि दान तो सदैव कल्याण के लिए किया जाता है वह बात अगर 'मत' दान की है तो कल्याण ही नहीं महा कल्याण होता है। मेरे पास ना स्वार्थ है, ना लोलुपता है और ना हीं किसी का निर्देश है। मेरे पास 'मत' (विवेक) है और देश, समाज और विश्व में सनातन की स्थापना के लिए मेने आज पुन: मत का दान किया है।
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