पांच दशक चार वर्ष के "जी+वन" भ्रमण की यात्रा में अगर कोई अपकृत्य हुआ है तो क्षमां की आकांक्षा है
पांच दशक चार वर्ष के "जी+वन" भ्रमण की यात्रा में अगर कोई अपकृत्य हुआ है तो क्षमां की आकांक्षा है 👏🙏
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*हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाँथ*
"जी" और "वन" यह दोनों ही शब्द वर्तमान में मानव जन्म को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं। "जी" अर्थात टू जी, थ्री जी, फोर जी और अब फाईव "जी" अर्थात "जी" के बगैर गाड़ी नहीं चलती। वहीं "वन" शब्द से आप सभी परिचित हैं। क्योंकि प्राचीन काल में मानव इन्ही में निवास करता था, लेकिन इन दोनों शब्दों को मिला दो तो एक शब्द बनता है और उसे कहते हैं "जीवन" अर्थात जन्म और मृत्यु के मध्य का बीता हुआ काल।
जन्म का प्रथम पल जन्म समय कहलाता है और प्रथम दिन को जन्मदिन कहते हैं। यह पल और दिन माता-पिता की कृपा से संतान को प्राप्त होता है। जीव के पहले दिन पर लोग खुशी मनाते हैं और अंतिम दिन शोक। पहले और अंतिम दिन के मध्य काल को ही "जीवन" कहते हैं। जो कर्म करने और कर्म सुधारे का हमको अवसर प्रदान करता हैं। कर्म ही हमें "फल" प्रदान करते हैं। बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने रामचरितमानस में बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।
*सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।*
*हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाँथ।।*
अर्थात भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो लेकिन, माता-पिता ने हमको "कर्म" जैसी ताकत दी है, जो हमें अपना मनचीता करने का वल प्रदान करती है।
*कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,*
*जो जस करहि सो तस फल चाखा।*
अर्थात: यह संसार यानी "जीवन" कर्मों पर आधारित है। जो जैसा "कर्म" करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। अर्थात आगे श्री गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
*सकल पदारथ हैं जग मांही,*
*कर्महीन नर पावत नाहीं"*
अर्थात, इस जगत में सभी प्रकार के पदार्थ हैं, लेकिन जो कर्महीन होता है, उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
अगर हम गोस्वामी जी के संदेश को ध्यान से पढ़ें और समझें तो यह तो स्पष्ठ हो जाता है कि हम अपने माता-पिता से कभी भी उऋण (ऋण मुक्त न होना) नहीं हो सकते। क्योंकि यह जीवन रूपी शरीर हम को माता-पिता के कारण मिलता है। इसलिए जन्मदिन का महत्व जन्म होने से नहीं बल्कि जन्म दिन का महत्व तब है, जबकि हमने अब तक बीते वर्षों में अगर प्रभु को स्मरण किया, नाम जप किया, प्रभु परिक्रमा की, प्रभु दर्शन यात्राएं की तो जन्मदिन का महत्व है और आपके आशीर्वचनों की आकांक्षा के साथ यह अवगत कराना है कि आज हमारे जी+ वन भ्रमण के पांच दशक चार वर्ष पूर्ण हुए हैं। आकांक्षायें तो यह भी है कि इस जी+वन में जितने पल, क्षण, मिनट, घंटे और वर्ष बाकी है, वह प्रभु नाम सर्कितन, प्रभु परिक्रमा, प्रभु दर्शन और हरिनाम जप में बीतें। जो नाम जप का अधिकारी बनता है वास्तव में वह ही सच्ची कमाई करता है। क्योंकि
*दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया*
सभी से इन *पांच दशक चार वर्ष* के पूर्ण होने पर जाने अनजाने में हुए ऐसे कृत्यों, जिनसे आप में से किसी को कोई कष्ठ पहुंचा होतो कर जोड़ कर, चरण वंदन के साथ क्षमां मांगते हैं।
जय जय श्री राधे राधे राधे श्याम
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