चाह है तो राह है, लेकिन पहचाने कैसे, पढ़ डालिये इन लाइनों को
जिंदगी में कुछ पाना है तो ''मन" करें काबू में
''मन'' को जिसमें लगाओगे लग जयेगा
-''मन" को लक्ष्य में लगाओ तो उद्देश्य की प्राप्ति होगी
-अन्यथा भटकता रहेगा और गलत राह (रास्ता) पकड़ लेगा
उत्तर प्रदेश। हम जिंदगी में पाना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन करना कुछ नहीं चाहते। अगर कुछ पाना है तो ''मन" को कबू (नियंत्रित) करते हुए हमको लक्ष्य को साधना होगा। छोटे छोटे लक्ष्यों को साधते हुए हम उद्देश्य तक पहुंच सकते हैं। जिन्होंने भी सफलता पाई है, इतिहास गवाह है उन्होंने पहले ''मन" की नहीं मानी। बल्कि मनको अपनी सफलता के उस रास्ते को बताया। अर्थात अंतर्मन (आत्मचिंतन) किया। यानी ''मन" को बताया कि पैसा कमायेंगे तो घर में खुशियाँ आयेंगी, हमारे सपने साकार होंगे, साधना करेंगे तो प्रभु भक्ति का मार्ग सुगम होता जायेगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी। यदि सर्वमान्य (सभी के हितार्थ) कार्य करते हुए प्रभु की भक्ति में ''मन" लगायेंगे तो वैकुंठ की प्राप्ति होगी। अर्थात यहाँ ''साधना" माने लक्ष्य और स्वर्ग माने उद्देश्य। सर्व हितार्थ कार्य करते हुए प्रभु के चरणों में मन लगाना लक्ष्य और वैकुंठ की प्राप्ति उद्देश्य।
हमारे पास है एक विकल्प
अगर आपको भी सर्व हितार्थ कार्य करना है तो हमारे पास एक विकल्प है और वह है *Herbaldhara* (हर्बलधारा) यानी एक ऐसा सिस्टम जिसमें आपने मन लगाकर कार्य किया तो आपके इस संसार के लिए देखे सभी स्वप्न साकार होंगे। आके घर में खुशियाँ आएंगी। क्योंकि ''मन" से कार्य किया तो सफलता की गारंटी है। क्योंकि इस बिजनेस में न कोई रिस्क है, न कोई झंझट। साथ ही पैसा लगाने की आवश्यकता भी नहीं है। अगर जरूरत है तो निस्वार्थ भाव से ''मन" लगा कर कर्म करने की। क्योंकि इससे सर्व कल्याण का रास्ता शुरू होता है। क्योंकि आपके कार्य से औरों के घरों में भी खुशियों का आयेंगी। देश को राजस्व मिलेगा तो देश की इकोनोमिक ताकत बढ़ेगी ( अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी)। इसलिए इसमें सभी की भलाई है। साथ ही हमारा प्रयास रहेगा कि आपके भक्ति मार्ग पर जायें। इसके लिए हम समय-समय पर इस प्रकार के कार्यक्रमों में आपका सहभाग (धार्मिक कार्यों उपस्थित) कराने का प्रयास करेंगे।
आइये समझते हैं ''मन" की एक बोध कथा
एक बार की बात है कि दो साधु एक रास्ते से गुजरते थे। एक ने दूसरे साधू से कुछ मार्मिक बात कही तो सुनने वाले साधू ने कहा
यहां सुनायी भी नहीं पड़ेगा। यहां बाजार है काफी शोर-गुल है ! यह ज्ञान की बात यहां मत करो-एकांत में चलकर करेंगे।
तभी मर्म यानी ज्ञान की बात कहने वाले साधु ने वहीं शोर-गुल वाले बाजार में खड़ा होकर। अपनी जेब से एक रुपया निकाला और धीरे से रास्ते पर गिरा दिया। खन-खन की आवाज हुई, भीड़ इकठ्ठी हो गयी। पहले सुनने वाले साधू ने पूछा कि मैं समझा नहीं, यह तुमने क्या किया। सुनाने वाले साधुने रुपया उठाया, जेब में रखा और चल पड़ा। उसने कहा," इतना भरा बाजार है, इतना शोर-गुल मच रहा है, लेकिन रुपये की जरा-सी आवाज सुनते ही इतने लोग आ गये। यह रुपये के प्रेमी हैं। यह पैसे से प्रेम करते है। इसीलिए काफी शोर-गुल में भी रुपये की खनक सुनली। क्योंकि उनका ''मन" रुपये मेंं लगा है, लेकिन उनको यह नहीं आता कि रुपया कैसे आता है। अर्थात भयंकर उत्पात मचा हो और अगर रुपया गिर जाए तो ये सुन लेंगे।'
दिल्ली मेट्रो के एक स्टेशन पर हर्बल धारा लीडर लोकेश राजपूत संजय यादव जी को हर्बल धारा का प्लान देते हुए एक सेल्फी
समझने की बात यह है कि
हम वही सुन लेते हैं जो हम सुनना चाहते हैं। उस साधु ने कहा, ' अगर तुम परमात्मा के प्रेमी हो तो यहां भी, बाजार में भी परमात्मा के संबंध में कुछ कहूंगा तो तुम सुन लोगे। अर्थात आपके मार्ग में कोई दूसरा बाधा नहीं डाल रहा है। बल्कि आप स्वयं अपने मार्ग की बाधा को पहचानना नहीं चाहते। यानी ''मन" तो आपका बहुत कुछ पाने को है, लेकिन हम ''मन" अपने लक्ष्य में लगाना नहीं चाहते। यानी जो हमारा ''मन" चाहता है
हम वही सुनना चाहते है, लेकिन जो हम पाना चाहते हैं उसमें ''मन" लगाना या चाहते नहीं है या फिल हम पर ''मन" को लक्ष्य के प्रति लगाना आता नहीं है। यदि आप भी ''मन" को अपनी सफलता के लिए लगाना चाहते हैं या सीखने के इच्छुक हैंतो तो यह नंबर हैं।
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