बच्चे को बचपन से सीखने और देखने को मिलता हैं बलात्कार के टिप्स

सजा से नहीं सोच से लगेगा बलात्कार पर अंकुश

UP Hathras 17 July 18। क्यों एक मानव हैबान बनता है और बलात्कार जैसे कृत्य को अंजाम देता है। आइए समस्या की तह तक चलते हैं। सत्यवादी हरीशचंद्र की सत्य निष्ठा का पूरा विश्व कायल है, जिस देश में मर्यादित जीवन का संदेश दिया राम ने और गीता का ज्ञान देने वाले श्रीकृष्ण को छलिया भी कहने से यह देश और समाज नहीं चूका, लेकिन इन सभी के संदेशा और समन्वयता सांचा तैयार किया। देश और समाज में स्थापित किया था दंड का भय और पाप का डर, जिससे लगा था बुरे कार्यों पर विराम, लेकिन विश्व गुरु रहे देश में फिर से बच्चियों अस्मत से खिलवाड़ और वह भी दानवीय प्रवृत्ति के साथ, मतलब व्यवस्था और परंपराओं में कहीं न कहीं तो झौल है
आओ देखे समस्या कहां है।
देश में बलात्कार जैसी घटनाओं की अचानक बाढ़ आई और वह भी बुरी तरह हैवानियत के साथ। कुछ समझने की कोशिश करें बलात्कार अचानक इस देश मे क्यो बढ़ गए ? कुछ उद्धरण से समझते हैं
01. लेगों का कहना है कि क्यों होते हैं बलात्कार
एक 8 साल का लड़का सिनेमाघर में राजा हरिशचंद्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वो बड़ा होकर महान व्यक्तित्व से जाना गया। परंतु आज 8 साल का लड़का टीवी पर क्या देखता है? सिर्फ नंगापन, अश्लील वीडियो व फोटोज। मैग्जीन में अर्धनग्न फोटो व पडोसिन महिलाओं जैसे चाची, भाभी व अन्य के छोटे कपड़े तो उसके मन क्या बिचार आएंगे। लोगें का कहना है कि बलात्कार का कारण बच्चों की मानसिकता है, लेकिन सोचने की बात तो यह है कि बच्चों में ऐसी मानसिकता आई कहां से। हमने ही पुरोई ना। सच कहा जाए तो बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य के लिए जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद ही हैं। 
क्योंकि हम रवपदज िंउपसल नही रहते।
02. कैसे जगी बच्चे के मन में सैक्स की इच्छा और जन्म हुआ बालात्कार का
पहले भारत में संयुक्त परिवार थे तो बच्चों पर सोच और संस्कार का दबाव रहता था, लेकिन अब हम एकल परिवार यानि अकेले रहना पसंद करते हैं। आज के समय में अपना परिवार चलाने के लिये माता-पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना है। परिणाम बच्चों को मिलता है अकेलापन अर्थात ‘‘खाली दिमाग सैतान का घर’’ यानि बच्चों को अपना अकेलापन दूर करने के लिये टीवी और इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन पहले दादी-दादा और घर के अन्य बड़ों से बच्चों को संस्कार मिलते थे और अकेलेपन का अहसास ही नहीं होता था। जबकि आज अकेलेपन को दूर करने के लिए बच्चों को दादी-दादा नहीं बल्कि मिलता है पाश्चात्य संस्कृति का नंगापन यानि सिर्फ वही अश्लील वीडियो और फोटो तो बच्चों की मानसिकता का एक प्रवल हिस्सा बनेगा अश्लीलता और अपने मनकी जिज्ञासा को बुझाने के लिए वह तलासेंगे किसी बच्ची या फिर करेंगे कुछ अपकृत्य।
अगर वही बच्चा अकेला न रहकर अपने दादा-दादी के साथ रहे तो कुछ अच्छे संस्कार सीखेगा और खाली दिमांग ही नहीं होगा तो बलात्कार जैसा दंश उसके जहन में प्रवेश ही नहीं कर पाएंगा। हम कहां पर हैं? क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है? यह प्रश्न हर किसी को मंथन करने चाहिए। पूरा देश बलात्कार की घटनाओं पर उबल रहा है। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं से सभी में गुस्सा है। कोई सरकार को कोस रहा, कोई समाज को तो कोई इसके लिए सिस्टम को दोषी मान रहा है, लेकिन मानने से कुछ होने वाला नहीं है। होगा तो वह करने से अर्थात हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी निभाए और अपने घर में संस्कारों को जिवित रखें तो संस्कारी बालक पैदा होंगे और फिर यह देश विश्व गुरू बन जाएगा।

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