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पांच दशक चार वर्ष के "जी+वन" भ्रमण की यात्रा में अगर कोई अपकृत्य हुआ है तो क्षमां की आकांक्षा है

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पांच दशक चार वर्ष के "जी+वन" भ्रमण की यात्रा में अगर कोई अपकृत्य हुआ है तो क्षमां की आकांक्षा है 👏🙏 🌹🌺🌸🌹🌺🌸🌹🌺🌸 *हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाँथ* "जी" और "वन" यह दोनों ही शब्द वर्तमान में मानव जन्म को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं। "जी"  अर्थात टू जी, थ्री जी, फोर जी और अब फाईव "जी" अर्थात "जी" के बगैर गाड़ी नहीं चलती। वहीं "वन" शब्द से आप सभी परिचित हैं। क्योंकि प्राचीन काल में मानव इन्ही में निवास करता था, लेकिन इन दोनों शब्दों को मिला दो तो एक शब्द बनता है और उसे कहते हैं "जीवन" अर्थात जन्म और मृत्यु के मध्य का बीता हुआ काल। जन्म का प्रथम पल जन्म समय कहलाता है और प्रथम दिन को जन्मदिन कहते हैं। यह पल और दिन माता-पिता की कृपा से संतान को प्राप्त होता है। जीव के पहले दिन पर लोग खुशी मनाते हैं और अंतिम दिन शोक। पहले और अंतिम दिन के मध्य काल को ही "जीवन" कहते हैं। जो कर्म करने और कर्म सुधारे का हमको अवसर प्रदान करता हैं। कर्म ही हमें "फल" प्रदान करत...

जो "समझ" को "समझ" गया, मानो वह सफल गया

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*समझ* है तो समाधान है 'समझ' शब्द को समझना (जानना) जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन दुनियाभर के 90 से 95 % लोग समझना ही नहीं चाहते। लोग केवल काम (जरूरत) भर का ही समझना चाहते हैं। खास कर भारतीय परिवेश में तो ऐसा ही देखने को मिल रहा है।  01. पिता पर बच्चों को समझने का वक्त नहीं है। 02. बच्चों पर माता पिता को समझने का वक्त नहीं है। 03. भाई को भाई को समझने का वक्त नहीं है। 04. और तो और पति पत्नी में आपसी समझ का वक्त नहीं है। 05. नौकर को मालिक और मालिक को नौकर की समझ पर विभेद है। फिर भी हर कोई चतुर है, लेकिन किस में, शायद धोखा देने में, धोखे का दूसरा नाम ही स्वार्थ। स्वार्थ पूर्ति में लगे लोगों में से इस दुनिया में केवल और केवल वह ही लोग सफल हैं जो सामने वाले को समझने माद्दा रखते हैं। *उदाहरणार्थ:-*          01. हाल ही के परिक्षण में *नरेंद्र मोदी* का नाम स्पष्ट होता है।  यहाँ समझदारी यह है कि उन्होंने समझा अपने विपक्ष को। अपने सहयोगियों को और देश व समाज की जनता को। इससे पहले उन्होंने समझा अपनी माँ को और माँ के...

मेरा 'मत' दान के लिए देश और समाज के लिए

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*मेरे पास 'मत' है और देश व समाज के लिए मेने उसका दान किया है* ब्रजद्वार (हाथरस)। गणतंत्र से मिली ताकत का नाम है 'मत'। 'मत' का सदैव दान ही किया जाता है। आप चाह करके भी 'मत' को उधार नहीं दे सकते। 'मत' मजबुरी नहीं अपितु स्वैच्छिक रूप से किसी ऐसे व्यक्ति, संघ या संगठन को दान किया जा सकता है जिस से शांति, सौहार्द और सद्भावना की आपको उम्मीद हो। भारतीय गणतंत्र में तो 'मत' की और अधिक जिम्मेदारी बढ़ जाति है क्योंकि भारतीय गणतंत्र ही वह सर्व कल्याणी व्यवस्था है जिसके माध्यम से पूरे विश्व में बहुसंख्यक समाजों को सुरक्षा और संरक्षा मिल सकती है, बसरते कि इसकी बागडोर सच्चे, नि:स्वर्थ और सनातनी संकल्प की सोच वाले व्यक्तित्व के हाथों में होनी चाहिए। जिसके अंदर न परिवार बाद की पकौड़ी सिकती हो और ना हीं भ्रष्टता की मलाई जमती हो। मेने भी एक ऐसे ही व्यक्तित्व को आज पुन: एक बार फिर से अपने मत का दान कर दिया है। हालांकि मेरा परिवार भी देश में एक विदेशी भाषा में उच्चरित नाम वाली पार्टी का दिवाना हुआ करता था। यह ही नहीं देश के लिए अपना लहू भी बहाने व...

हर व्यक्ति का पैसा कमाने में अच्छा प्लेटफॉर्म है हर्बलधारा

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हर व्यक्ति की सफलता का प्लेटफॉर्म है हर्बलधारा : सीएमडी - स्वास्थ्य के क्षेत्र में वरदान है हर्बलधारा: डाॅ. महेश  - कृषि और घरेलू प्राडक्टों को प्रयोग में लाकर मन चाही दौलत कमाई जा सकती है : रूबी डायरेक्टर  बरेली। एक समय था जब बरेली के  बाजार में झुमका गिरा था, लेकिन अब हर्बलधारा का विश्वास पहुंचा है। जो झुमका को तो उठाये या नहीं, लेकिन बरेली के लोगों में छुपे आत्मबल व आत्मविश्वास को उठाकर गिरी आत्मनिर्भरता की ओसत को सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचाने का कार्य करेगा, मगर सिस्टम से चलने की आदत को जीवन में सुमार करने का अनवरत अभ्यास अपने अंदर डालना पड़ेगा।         जी हाँ हम बात बरेली में हुई लीडर काउंसलिंग ट्रेनिंग की कर रहे हैं। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि  सीएमडी श्री आरके यादव व विशिष्ट अतिथि डाॅ.श्री महेश दिखनवार और रूवी डायरेक्टर ठा. रमेशचन्द्र मौजूद थे। ट्रेनिंग का मुख्य विषय थे :-👇🏻 ● आखिर जीवन में क्यों जरूरी है हर्बलधारा बिजनेस ? ● इसे कौन-कौन कर सकता है ?  ● क्या इस बिजनेस से हम अपने सभी सपनों को साकार कर सकते हैं ? ...

इसको पढ़ने से आपका भाग्य बदल जायेगा

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*भाग्य बदलना है तो इसको पढ़ो*👇 आपने इस कहानी को मन, बुद्धि और और ध्यान से पढ़ा तो निश्चित ही *आपका भाग्य बदल जायेगा।* कहानी 👉 एक व्यक्ति जिसकी मृत्यु होने वाली थी, लेकिन उसको पता नहीं था ? उसके दरवाजे पर अचानक  मानव भेष में मृत्यु के देवता यमराज पहुंचते हैं और दरवाजा  खटखटाते हैं। वह व्यक्ति आता है तो यमराज कहते हैं बहुत प्यास लगी है, क्या पानी मिलेगा ? वह व्यक्ति अंदर जाता है और उन्हें (यमराज) को पानी का ग्लास दे देता है। पानी पीने के बाद,  यमराज कहते हैं मैं यमराज हूँ। तुम्हारा समय पूरा होने वाला है और तुम्हे लेने आया हूँ। यह सुनते ही उसकी हालता खराब हो जाती है और वह डर जाता है। यमराज कहते हैं! डरो मत तुमने मुझे पानी पिलाया है। यह लो डायरी तुम्हारे पास पांच मिनट का वक्त है, इसमें जो लिख दोगे वही हो जायेगा। यह सुनते ही उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है। क्योंकि अभी तो उसको मौत के दर्शन हो रहे थे और अचानक जीवन की खुशी मिली। उसने यमराज से वह भाग्य बदलने वाली डायरी और पैन लिया। जैसे ही उसने डायरी का *पहला* पन्ना खोला दंग रह गया। उसमें लिखा था...

वह मर कर के भी हमें अपना गुलाम बनाये हुए है

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वह मर कर भी हमें गुलाम बनाये हुऐ है हम स्वतंत्र, लेकिन आर्थिक गुलामी क्यों ? आर्थिक गुलामी का सूत्रधार "नौकरी" और नौकरी के चक्रव्यूह की सीढ़ी शिक्षा पद्वति की अनवरतता एक बहुत ही चिंतनीय बात अगर आप पढ़ते हैं तो आभार होगा 👇 हम रहते भारत में हैं, लेकिन सीखना अंग्रेजी चाहते हैं। अन्न भारत का खाते हैं, लेकिन प्रोडक्ट विदेशी खरीदते हैं। जन्म भारत में लिया है, लेकिन पढ़ाई के बाद विदेशी कल्चर को अपनाने में अपनी शान समझते हैं। मजे की बात तो यह है कि यह सब आप खुद नहीं कर रहे, बल्कि आप पर कराया जा रहा है और कौन करा रहा है उसकी जानकारी सुन कर तो आप चौंक जायेंगे। क्योंकि आप से यह सब कराने वाला कोई जीवित व्यक्ति नहीं, बल्कि अब इस संसार में नहीं है। यह उसकी एक सोची समझी साजिश थी कि मैं जब तक जीवित हूंगा, भारतीयों मजबूर करता रहूँगा और ऐसा कर के छोड़ जाऊंगा कि मेरे बाद भी यह शरीर से भारतीय होंगे  क्योंकि भारत में जन्म लेंगे, लेकिन सोच से अंग्रेजियत में रचेपचे होंगे। आज वह ही हो रहा है जो वह चाहता था। आज  हम जम कर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करते हैं। भले ही हम पर कक्...

मन को जोड़ मस्तिष्क से और हर्बलधारा से पाइये हमेशा के लिए हर्ष

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*मन को जोड़ मस्तिष्क से और हर्बलधारा से पाइये हमेशा के लिए हर्ष* *- नोटों से भरे रहेंगे पर्स* सोच से स्वप्न साकार होते हैं, लेकिन सोच को कर्म में कन्वर्ट करने से। सोच जब सार्थक होती, तबकि सोच का कनेक्शन "मन" और "मस्तिष्क" से करदिया जाय। केवल मन से कनेक्शन हमको सफलता नहीं दिलाता है। क्योंकि "मन" में चिंतन करने की क्षमतायें नहीं होती। जबकि मस्तिष्क चिंतन और मनन करने में पारंगत होता है। बस आपको उसकी मेमोरी में सब्जेक्ट डालना होता है। जब मस्तिष्क में सब्जेक्ट जाता है तो वह अच्छा-बुरा, सफलता-असफलता और उचित-अनुचित आदि के विषय में अपने थोट (चिंतनीय परिणाम) देता है, लेकिन हम यानी कि 95% लोग अपने "मस्तिष्क" के बजाय "मन" की मान बैठते हैं और परिवार उल्टे निकलते हैं। फिर हम सिस्टम में कमियां निकालते हैं या फिर सीनियर यानी गुरुजन को कोसते हैं, लेकिन किसी और में कमी निकालने या फिर किसी को कोसने से पैसा जनरेट नहीं होता है। पैसा तो पारंगतता (विषय की पूर्ण जानकरी) से आता है। इसलिए "मन" की लगाम मस्तिष्क को दे दें और लग जायें अपने का...