जो "समझ" को "समझ" गया, मानो वह सफल गया
*समझ* है तो समाधान है 'समझ' शब्द को समझना (जानना) जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन दुनियाभर के 90 से 95 % लोग समझना ही नहीं चाहते। लोग केवल काम (जरूरत) भर का ही समझना चाहते हैं। खास कर भारतीय परिवेश में तो ऐसा ही देखने को मिल रहा है। 01. पिता पर बच्चों को समझने का वक्त नहीं है। 02. बच्चों पर माता पिता को समझने का वक्त नहीं है। 03. भाई को भाई को समझने का वक्त नहीं है। 04. और तो और पति पत्नी में आपसी समझ का वक्त नहीं है। 05. नौकर को मालिक और मालिक को नौकर की समझ पर विभेद है। फिर भी हर कोई चतुर है, लेकिन किस में, शायद धोखा देने में, धोखे का दूसरा नाम ही स्वार्थ। स्वार्थ पूर्ति में लगे लोगों में से इस दुनिया में केवल और केवल वह ही लोग सफल हैं जो सामने वाले को समझने माद्दा रखते हैं। *उदाहरणार्थ:-* 01. हाल ही के परिक्षण में *नरेंद्र मोदी* का नाम स्पष्ट होता है। यहाँ समझदारी यह है कि उन्होंने समझा अपने विपक्ष को। अपने सहयोगियों को और देश व समाज की जनता को। इससे पहले उन्होंने समझा अपनी माँ को और माँ के...